Monday, July 30, 2018

एक क़दम.... महाशक्ति की ओर.

#शह_और_मात_की_कूटनीतिक_बिसात

#भारत_का_रवांडा_के_रास्ते_सुरक्षित_कल_की_ओर_आज_के_निश्चित_कदम

#नोट - पोस्ट लंबी है समय होने पर ही आगे बढ़ें !!

सन 2016 में ग्लोबल फुटप्रिंट्स नेटवर्क द्वारा एक रिपोर्ट बनाइ गयी , इस रिपोर्ट के अनुसार 2016 के पहले 7 महीनों में ही हमने अपने हिस्से के सालभर के मूल्य जितने प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग कर लिया था। उनके आँकलन के मुताबिक हर तीस साल या उससे कुछ ज्यादा समय में विश्व की आबादी दोगुनी हो जाती है। भारत की जनसंख्या में जिस तेजी से वृद्धि हो रही है, उसको देखते हुए इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में स्थिति और भी भयावह होगी क्योंकि आने वाले समय में भारत विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश होगा, जी हाँ! चीन से भी आगे ।

किसी भी स्थिति में आने वाले समय मे भारत आबादी के एक ऐसे स्तर पर पहुंच जाएगा जहां उसके लिए इतने अल्पकाल में भारी संख्या में लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं की पूर्ति करना कठिन हो जाएगा। यह और दूसरे मुद्दे ग्लोबल स्तर पर आपस में जुड़े होते हैं और नीति आयोग सरीखी संस्था को इनका चयन विशेषज्ञता के साथ करना पड़ता है। पिछले 10 सालों में देश की आबादी करीब 10 करोड़ बढ़ी है अर्थात उत्तर प्रदेश के बराबर एक राज्य अथवा पाकिस्तान के बराबर एक देश या फिर आस्ट्रेलिया के बराबर दो देश हमारी आबादी में जुड़े गए हैं। 2011 की जनसंख्या के अनुसार भारत में 1 अरब 21 करोड़ लोग रहते हैं। यह जनसंख्या अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान, बांग्लादेश और जापान की कुल जनसंख्या के बराबर है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1991 से 2025 तक के मात्र 34 सालों में भारत की जनसंख्या वृद्धि दर दोगुनी हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक और रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व की जनसंख्या भी यदि इसी तेजी से बढ़ी तो 2050 तक यह 7 अरब से बढ़ कर 9.2 अरब हो जाएगी। किसी भी देश के विकास पर जनसंख्या का भारी प्रभाव पड़ता है , जनसंख्या किसी भी देश का क्षेत्रफल, देश में उपलब्ध प्राकृतिक साधन( जैसे कि खेती की उपज, दूध और फलों की आपूर्ति, जल की आपूर्ति, बिजली की उपलब्धता इत्यादि) के अनुरूप होने पर ही देश का विकास निश्चित तौर पर होता है। देश में रहने वाले नागरिकों को मकान बना कर रहने के लिए उचित मात्रा में जमीन का उपलब्ध होना आवश्यक है।

जनसंख्या की जरूरत के अनुसार खाद्यान्न की पूर्ति के लिए खेती लायक उपजाऊ जमीन भी आवश्यक है जिससे मौसम के अनुरूप अनाज और फल उगाए जा सकें। पानी और बिजली की आपूर्ति भी देश के नागरिकों को उचित रूप से मिले, यह अति आवश्यक है। भारत में आबादी की निर्भरता का अनुपात 1950 में 7.8 से 2010 में 11.1 तक बढ़ गया है। निर्भरता का अनुपात एक विशेष समय बिंदु पर एक देश, क्षेत्र या भौगोलिक टुकड़े में प्रति सौ आर्थिक रूप से उत्पादक लोगों पर निर्भर लोगों की औसत संख्या है।

आने वाले अगले कुछ ही सालो में भारत जैसे विकासशील देश के लिए जनसंख्या एक सबसे बड़ी चुनौती होगी। जनसांख्यिकीय विकास और आर्थिक विकास में जटिल संबंध होते हैं, खास कर तब जब दोनों अप्रत्याशित स्तर पर पहुंच रहे हों। अगर जनसंख्या ज्यादा है और देश का क्षेत्रफल कम है तो देश के नागरिकों के लिए रिहाइशी जगहों की कमी का सामना करना पड़ सकता है। खेती लायक जमीन अगर देश में ज्यादा नहीं है या जल संसाधनों की आपूर्ति किसी कारण वश कम है तो देशवासियों को खाद्यान्नों की कमी का सामना करना पड़ सकता है।

अब आप सोच रहे होंगे कि मैं ये क्यों बता रहा हूँ , तो इसका कारण है कि ये मुद्दा सीधा आपसे जुड़ा है , हालांकि मैं राजनैतिक पोस्ट नही करता न तो किसी पार्टी की तरफदारी लेकिन कुछ बाते बेहद जरूरी हो जाती है , तो आइए राजनीति से ऊपर उठकर सोचिए और देखिए कि मोदी वाकई क्यों जरूरी है देश के लिए , मोदी की दूरदर्शिता ने आज मुझे आज इस संदर्भ में लिखने पर विवश कर दिया ।।

#भारत_चीन_और_गेटवे_ऑफ_अफ्रीका -

भारत और चीन दो उभरती हुई महाशक्तियां है जिनका दबदबा पूरा विश्व मान रहा है , दोनो एक विकासशील देश है और दोनो की भविष्य की समस्या है बढ़ती हुई जनसंख्या और भारत और चीन दोनों इस बात को जानते हैं कि अफ्रीका महाद्वीप दोनो की बढ़ती जनसंख्या के लिए न सिर्फ रशद और खाद्यान्न की पूर्ति कर सकता है बल्कि रोजगार के नए विकल्प भी दे सकता है । ऐसे में अफ्रीकी देशों के प्रति आकर्षण स्‍वभाविक है।

#अफ्रीका_में_चीन -
अफ्रीका में चीन की 8000 कंपनियां है और चीनी उद्यमों में काम करने के लिए दस लाख चीनी अफ्रीका में बसे हुए हैं। वह बड़े पैमाने पर अफ्रीका में निवेश कर रहा है। उसने बंदरगाह, हवाई अड्डे, रेल और सड़क बनाने में काफी निवेश किया है। चीन, खाड़ी के देश और जापान अफ्रीकी देशों में बड़े पैमाने पर कृषि भूमि खरीद रहे हैं।  हाल ही में रॉयटर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि चीन युगांडा को अब तक 3 बिलियन डॉलर का कर्ज दे चुका है, साथ ही बीआरआई स्कीम के लिए 2.3 बिलियन डॉलर को लेकर बातचीत चल रही है। चीन अफ्रीका के जिबाउटी में नेवी बेस भी चलाता है, जिससे इस क्षेत्र में भी चीन की रूचि दर्शाता है।हाल के वर्षों में अफ्रीका में चीनी निवेश के प्रवाह में भी तेजी से वृद्धि हुई है। व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (अंकटाड) द्वारा प्रकाशित विश्व निवेश रिपोर्ट 2016 के मुताबिक, वर्ष 2014 में चीन अफ्रीका में चौथा सबसे बड़ा निवेशक था। चीन के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का आंकड़ा वर्ष 2009 के 9 अरब अमेरिकी डॉलर से 3 गुना से भी ज्‍यादा बढ़कर वर्ष 2014 में 32 अरब डॉलर के स्‍तर पर पहुंच गया और इसके साथ ही चीन ने दक्षिण अफ्रीका को इस क्षेत्र में विकासशील देशों की ओर से सबसे बड़े निवेशक के रूप में पीछे छोड़ दिया। वैसे तो अफ्रीका में ज्‍यादातर चीनी निवेश वास्तव में सरकार के स्वामित्व वाले बड़े उद्यमों की अगुवाई में ही होते हैं, जो आम तौर पर बुनियादी ढांचागत एवं संसाधन क्षेत्रों में निवेश करते हैं, लेकिन काफी तेजी से बड़ी संख्या में निजी चीनी उद्यमों ने भी कई अफ्रीकी देशों में अपनी-अपनी यूनिटों की स्थापना की है।  अफ्रीका के साथ चीन की आर्थिक साझेदारी महज संसाधनों तक सीमित नहीं है। वैसे तो चीन एवं अफ्रीका के बीच होने वाले कुल व्यापार में विभिन्‍न संसाधनों जैसे कच्चे तेल तथा तांबे के व्यापार का ही मुख्‍य योगदान होता है और चीन ने संसाधन-समृद्ध देशों जैसे अंगोला और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य को ‘संसाधन के बदले अरबों डॉलर के बुनियादी ढांचागत ऋण’ दिए हैं, और अफ्रीका ने  पेइचिंग के बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव को गले लगा लिया है।

#अब_बात_करते_है_भारत_की -
पिछले कुछ वर्षों में जिस परिमाण में उप-सहारा अफ्रीका के साथ भारत के व्यापार में भारी वृद्धि हुई है वह अपने-आप में ही इस बात का प्रमाण है कि उप-सहारा अफ्रीका भारत की नई धुरी है, भारत और उप-सहारा अफ्रीका के बीच सन् 2012 में व्यापार $60 बिलियन डॉलर का हो गया. उसी वर्ष अन्य देशों (योरोपीय संघ ($567.2 बिलियन डॉलर), अमरीका ($446.7 बिलियन डॉलर) और चीन ($220 बिलियन डॉलर) के साथ व्यापार में उल्लेखनीय कमी हुई, तथापि, भारत की व्यापारिक गतिविधियों से यह संकेत मिलता है कि भारत का नया केंद्रबिंदु वह क्षेत्र है, जहाँ उसने आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्रों में विशेषकर संपूर्ण अफ्रीकी महाद्वीप में विशेष कार्यक्रम चलाये हैं।

आर्थिक दृष्टि से भारत की गतिविधियों के तीन स्तंभ हैं -

1- #निवेश_कार्यक्रम -
अफ्रीकी कार्यक्रम को धुरी बनाकर द्विपक्षीय व्यापार और निवेश के क्षेत्रों को चिह्नित किया जाता है और इससे द्विपक्षीय व्यापार को प्रोत्साहन भी मिलता है और पाँच वर्ष की प्रत्येक अवधि के लिए $550 बिलियन डॉलर का निवेश का लक्ष्य रखा गया है। इसके माध्यम से चौबीस अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार करने वाली भारतीय कंपनियों को निर्यात में सबसिडी मिलती है और अफ्रीकी सरकारों और क्षेत्रीय संगठनों को लाइन ऑफ़ क्रैडिट मिलता है। साथ ही, अफ्रीका- भारत आंदोलन की पहल (टीम-9 पहल) के तकनीकी आर्थिक दृष्टिकोण के केंद्रबिंदु वे नौ पश्चिमी अफ्रीकी देश हैं, जिन्हें $550 बिलियन डॉलर की एलओसी मिली हुई है। इसके अलावा, भारत के निर्यात को अफ्रीका के चौंतीस कम से कम विकसित देशों (एलडीसी) से उनके बाज़ारों में तरजीही पहुँच मिलती है और भारत ने अफ्रीका को अपनी एलओसी $5.4 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने का वचन दिया है। इन सरकारी पहलों के अलावा निजी क्षेत्र की कंपनियाँ भी वहाँ पर भारी मात्रा में लाखों बिलियन डॉलर के वित्तीय निवेश कर रही हैं ।

2 - #विकास_में_मदद -
खास तौर पर भारतीय तकनीकी व आर्थिक सहकारिता (आईटीईसी) कार्यक्रम के रूप में। आईटीईसी का काम है, कृषि के क्षेत्र में क्षमता निर्माण, सिविल या सैन्य प्रशिक्षण या परामर्श सेवाएँ। कुल मिलाकर भारत ने अब तक उप-सहारा अफ्रीका को $1 बिलियन डॉलर की ऐसी सहायता प्रदान की है। इस प्रकार यह क्षेत्र आईटीईसी की सहायता प्राप्त करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र हो गया है।

3 -  #हाइड्रोकार्बन_या_प्राकृतिक_संसाधन
कभी-कभी भारत की सरकारी और निजी कंपनियों ने तेल या गैस के फ़ील्ड के लिए और उनकी खोज के ठेकों के लिए चीनी सरकार द्वारा समर्थित कंपनियों के साथ कड़ी प्रतियोगिता का प्रयास भी किया है। सन् 2012 में भारत के कच्चे तेल का लगभग 20 प्रतिशत आयात अंगोला, नाइजीरिया, सूडान या दक्षिण अफ्रीका से होने लगा था।

#राजनैतिक_खाइयों_को_पाटने_की_पहल -
जब दो बड़े एशियाई देश अपनी रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता के तहत किसी दूसरे देश पहुंचे तो क्या करना चाहिए? निश्चित तौर पर दोनों ही देशों को गले लगाने का विकल्प सबसे बेहतर साबित होगा और अफ्रीकी यही कर रहे है
भारत-चीन दोनों ही अफ्रीकी देश रवांडा में रुचि ले रहे हैं। खास बात यह है कि जहां भारत-चीन में गेटवे ऑफ अफ्रीका को लेकर कड़ा मुकाबला  चल रहा है वहीं रवांडा भी इन दोनों देशों के साथ रिश्तों में संतुलन बनाने की कोशिश में लगा है। भारत 1983 में अफ्रीकी विकास बैंक का सदस्य बना था, लेकिन इस साझेदारी को अगले स्तर पर ले जाने में उसे 30 साल लग गए, इस सुस्ती से यह भी पता चलता है कि भारत अफ्रीका में किस हद तक दिलचस्पी ले रहा था, हालांकि वह इस समय वहां पांचवां सबसे बड़ा निवेशक है, अफ्रीका के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारत की हिस्सेदारी 54 अरब डॉलर या तकरीबन 19.2 फीसदी है, इसके साथ ही 2015-16 में द्विपक्षीय व्यापार 56.9 अरब डॉलर था, अफ्रीका में अपना निवेश और उपस्थिति बढ़ाने के लिए भारत को इससे जुड़े फैसले लेने की गति बढ़ानी होगी।अफ्रीकी देश चाहते हैं कि वहां निवेश सिर्फ प्राकृतिक संसाधन हासिल करने के लिए न हो और उसमें विविधता आए, यानी अब इस दिशा में भारत को कोशिश करने की जरूरत है, यही एकमात्र कोशिश उसे अफ्रीका में चीन और यूरोपीय संघ (ईयू) से अलग और आगे खड़ा कर देगी। और मोदी वही कर रहे है  रवांडा में दो दिन तक रहे पीएम मोदी ने इस देश को 20 करोड़ डॉलर का कर्ज देने का वादा किया है। इसमें से आधे धन का इस्तेमाल रवांडा सिंचाई व्यवस्था विकसित करने और बाकी आधे का स्पेशल इकनॉमिक जोन (SEZ) बनाने में करेगा। भारत ने पिछले साल भी रवांडा को 12 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया था। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि नया कर्ज इससे अलग है या इसी का हिस्सा। दूसरी तरफ, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग भी रविवार को रवांडा में थे। इस दौरान उन्होंने रवांडा को 12.6 करोड़ डॉलर देने का वादा किया। इसमें से 7 करोड़ 60 लाख डॉलर हुए से किबेहो तक सड़क बनाने के लिए और बाकी नए बुगेसेरा एयरपोर्ट तक पहुंचने के लिए सड़क बनाने पर खर्च होगा।

#गाय_देकर_दिल_जीतने_की_कोशिश -

भारत की तरह ही रवांडा में भी गाय को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, रवांडा के प्राचीन इतिहास में गाय को मुद्रा की तरह प्रयोग में लाया जाता था, आपको बता दूँ कि भारत की तरह रवांडा भी कृषि प्रधान देश है,पीएम मोदी ने अपनी इस यात्रा में रवांडा को 200 गायें दी हैं, भारत सरकार के इस फैसले की चर्चा हो रही है, दरअसल इस फैसले के पीछे रवांडा सरकार की ओर से चलाई जा रही है एक योजना है जिसका नाम 'गिरिंका' है, इस योजना के तहत सरकार वहां पर कुपोषण दूर करने के लिये 3.50 लाख गांवों को गाय देगी और फिर उसके पैदा हुई एक बछिया को वह अपने पड़ोसी को देगा, इस योजना का मकसद इन गायों के दूध से परिवार अपने बच्चों का कुपोषण दूर करेंगे साथ ही दुग्ध उद्योग को भी बढ़ावा दिया जायेगा , यहां की 80 फीसदी खेती से जुड़ी है, रवांडा की आबादी 1.12 करोड़ है यहां की संसद में 2 तिहाई महिला सांसद है । इस शब्द का अर्थ होता है 'एक गाय रखिए'। रवांडा की सरकार ने साल 2006 में 'एक गरीब परिवार के लिए एक गाय' योजना लॉन्च की थी। इस योजना के जरिए कई परिवार गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकले हैं। रवांडा सरकार का दावा है कि इस योजना से अबतक 3.5 लाख परिवारों को फायदा मिला है।

#विशेष -
भारत और अफ्रीका के आपसी घनिष्‍ठ आर्थिक संबंधों से संभावित लाभ अभी तक पूरी तरह हासिल नहीं किए जा सके हैं। अपने विनिर्माण क्षेत्र में नई जान फूंकने और युवाओं के लिए रोजगार सृजित करने के उद्देश्‍य से भारत को अपने विनिर्माण क्षेत्र का विस्तार करने के लिए अब और भी अधिक सक्रिय रणनीति अपनाने की आवश्यकता है। भारत का बीमार विनिर्माण क्षेत्र वास्तव में अफ्रीका के तेजी से बढ़ते मध्यम वर्ग की अनदेखी करने का जोखिम नहीं उठा सकता है। दूसरी बात यह है कि चीन के पास मौजूद ‘ढेर सारे पैसे’ से भारत के बराबरी न कर पाने की असमर्थता को देखते हुए भारत के विकास सहयोग का अब कहीं ज्‍यादा रणनीतिक होना अवश्‍य ही जरूरी है। औरर  मोदी सरकार वही कर रही है भविष्य की असली लड़ाई की तैयारी क्योंकि यदि यदि भारत को गृहयुद्ध से बचना है तो या तो जनसंख्या नियंत्रण करे या उस जनसंख्या के लिए जमीन पानी खाद्दयन की व्यवस्था , और मुझे गर्व है कि मोदी भविष्य के लिए काम कर रहे है परिणाम देर से भले अभी न दिख रहा हो लेकिन निश्चित परिमाण मिलेगा ,, मोदी आपके भविष्य को सुरक्षित कर रहे है और आने वाली कोई भी सरकार हो उसे भी यही देखना पड़ेगा ।।

कॉपी : अजेष्ठ त्रिपाठी जी

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